गुरु की महत्ता, क्यूँ ज़रुरी है जीवन में एक सद्गुरु मानव जीवन में चिरकाल से ही गुरु का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ह्मारे देश की संस्क्रिति सदा ही सम्पन्न व धनी रही है अगर बात करें शिष्टाचार, संस्कारों, शिक्षा व सभ्यता की। हमारे भारत वर्ष में कितने ही युगों से बाल्य अवस्था से ही ह्में गुरु की मह्त्ता व महान्ता से अविभूत कराया जाता रहा है खासकर जब हमारा देश गुरुकुलों से भरपूर हुआ करता था। “गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु: गुरुर्महेश्वर: । गुरु: साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: ॥“ अथार्त – गुरु ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के समान है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है, ईश्वर है। ह्मारे पुराणों, शास्त्रों व ग्रन्थों में सदा ही गुरु को सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। गुरु का स्थान माता पिता व ईश्वर से भी सर्वोपरी है। परंतु आज के इस आधुनिक युग में गुरु, ज्ञान, व गुरुकुलों का महत्व व अस्तित्व खोता ही नज़र आता है। शिक्षा ज़्यादातर विद्यालयों में बस व्यापारिक ढंग से चलाया जाता है। ज्ञान बस नम्बरों का खेल बनकर रह गया है। आज की पीढ़ी सही गुरु व मार्गदर्शन से विमुख होती जा रही ...